इंद्र सबसे ताकतवर फिरभी क्यों डरते थे?! जानें रहस्य....
Devon ki katha Indra dev vajra women mystery Indian purana story

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इंद्र सबसे ताकतवर फिरभी क्यों डरते थे?! जानें रहस्य....
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इंद्र क्या?
इंद्र एक पद का नाम है, इंद्र देवताओं पर शासन करते है और अमरावती उनकी राजधानी है। अमरावती को ही हमारे धर्म में स्वर्ग कहा गया है। प्रत्येक मनवंतर का एक इंद्र होता है।
वर्तमान में जिस इंद्र का शासन चल रहा है उनका नाम है — पुरंदर ।
पुरंदर से पहले 5 इंद्रों ने स्वर्ग पर शासन किया था।
ऋग्वेद के लगभग एक-चौथाई सूक्तभगवान इन्द्र से सम्बन्धित हैं। 250 सूक्तों के अतिरिक्त 50 से अधिक मन्त्रों में उसका स्तवन प्राप्त होता है।
आज के समय के इंद्र का नाम पुरंदर है, इनकी मुख्य पटरानी शचि हैं। शचि के अलावा इनकी 32 रानियां और हैं, इंद्र के पुरी का नाम अमरावती है। इंद्र के बगीचे का नाम नंदन वन है जहां दिव्य कल्पवृक्ष है, इनकी जो सभा होती है उसका नाम सुधर्मा है।
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इंद्र के आदेश का पालन सभी देवता करते हैं, ये महाबलशाली, ऐश्वर्यवान और वैभवशाली हैं। इनकी पहुंच कैलाश, ब्रह्मलोक और वैकुंठ तक है।
ये अनंत सुखों को भोगते हुए तीनों लोकों पर राज्य करते हैं। इनके गुरु बृहस्पति हैं जो इन्हें राजकाज में सलाह देते हैं। चारित्रिक दुर्बलता की वजह से मनुष्यों ने इनकी उपासना बंद कर दी है। यहीं वजह है जो की इंद्र सबसे ताकतवर फिरभी क्यों डरते थे।
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आगे जानिए इसका विस्तृत उल्लेख...
तीन भूल जिन के लिए महा पराक्रमी वज्रधारी इंद्र को भी खोना पड़ा इंद्रासन...
प्रथम..
देवी अहिल्या की कथा का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकांड में मिलता है। अहिल्या अत्यंत ही सुंदर, सुशील और पतिव्रता नारी थी। उनका विवाह ऋषि गौतम से हुआ था। दोनों ही वन में रहकर तपस्या और ध्यान करते थे। ऋषि गौतम ही न्यायसूत्र के रचयिता हैं। शास्त्रों के अनुसार शचिपति इन्द्र ने गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ छल से सहवास किया था।
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द्वितीय....
एक बार दुर्वासा ऋषि ने विद्याधरी से प्राप्त सन्तानक पुष्पों की एक माला आशीर्वाद के साथ भगवान इन्द्र को दिया।भगवान इन्द्र को ऐश्वर्य का इतना मद था कि उन्होंने वह पुष्प अपने हाथी के मस्तक पर रख दिया। पुष्प के प्रभाव से हाथी उसकी सुगन्ध से आकर्षित होकर होकर उसे सूँघकर पृथ्वी पर फेंक दिया। भगवान इन्द्र उसे संभालने में असमर्थ रहे। दुर्वासा ने उन्हें श्रीहीन होने का श्राप दिया। अमरावती भी अत्यंत भ्रष्ट हो चली। भगवान इन्द्र पहले बृहस्पति की और फिर ब्रह्मा की शरण में पहुंचे। समस्त देवता विष्णु के पास गये। उन्होंने लक्ष्मी को सागर-पुत्री होने की आज्ञा दी। अत: लक्ष्मी सागर में चली गयी। विष्णु ने लक्ष्मी के परित्याग की विभिन्न स्थितियों का वर्णन करके उन्हें सागर-मंथन करने का आदेश दिया। मंथन से जो अनेक रत्न निकले, उनमें लक्ष्मी भी थी। लक्ष्मी ने नारायण को वरमाला देकर प्रसन्न किया। लक्ष्मी ने देवों को त्रिलोक से अब विरहित नहीं होने का वरदान दिया।
तृतीय...
भागवत पुराण के अनुसार एक बार 'बृहस्पति' जो देवताओं के गुरु थे, एक बार वह देवराज इंद्र से काफी नाराज हो गए। इसी दौरान असुरों ने देवलोक परआक्रमण कर दिया और इंद्र को इंद्रलोक छोड़कर जाना पड़ा।
तब इंद्र, ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे मदद की मांग की। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि, इंद्र देव आपको किसी ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा करनी चाहिए ऐसे में आपके दु:ख का निवारण होगा। तब इंद्र एक ब्रह्म-ज्ञानी व्यक्ति की सेवा करने लगे। लेकिन वो इस बात से अनजान थे कि उस ब्रह्म-ज्ञानी की माता असुर थीं। माता का असुरों के प्रति विशेष लगाव था। ऐसे में इंद्र देव द्वारा अर्पित सारी हवन सामग्री जो देवताओं को अर्पित की जाती थी, वह ब्रह्म-ज्ञानी असुरों को चढ़ाया करते थे। इससे इंद्र की सेवा भंग हो गई। जब इंद्र को यह बात पता चली तो वो बहुत नाराज हुए। उन्होंने उस ब्रह्म-ज्ञानी की हत्या कर दी। हत्या करने से पहले इंद्र उस ब्रह्म-ज्ञानी को गुरु मानते थे और गुरु की हत्या करना घोर पाप है। इसी कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष भी लग गया।
ये पाप एक भयानक दानव के रूप में उनका पीछा करने लगा। किसी तरह इंद्र ने स्वयं को एक फूल में छुपाया और कई वर्षों तक उसी में भगवान विष्णु की तपस्या करते रहे। भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और इंद्र को ब्रह्म हत्या के दोष से बचा लिया। उन्होंने इस पाप मुक्ति के लिए एक सुझाव दिया। सुझाव के अनुसार इंद्र ने पेड़, जल, भूमि और स्त्री को अपने पाप का थोड़ा थोड़ा अंश देने के लिए मनाया। इंद्र की बात सुनकर वह तैयार हो गए। इंद्र ने उन्हें एक-एक वरदान देने की बात कही।
सबसे पहले पेड़ ने ब्रह्महत्या के पाप का एक चौथाई हिस्सा लिया जिसके बदले में इंद्र ने पेड़ को अपने आप जीवित होने का वरदान दिया। इसके बाद जल ने एक चौथाई हिस्सा लिया तो इंद्र ने जल को वरदान दिया कि जल को अन्य वस्तुओं को पवित्र करने की शक्ति होगी।
तीसरे पड़ाव में भूमि ने ब्रह्म हत्या का दोष इंद्र से लिया बदले में इंद्र ने भूमि को वरदान दिया कि भूमि पर आने वाली कोई भी चोट से उसे कोई असर नहीं होगा और वो फिर से ठीक हो जाएगी। आखिर में स्त्री ही शेष बची थी। इंद्र का ब्रह्म हत्या का दोष स्त्री ने लिया। बदले में इंद्र ने स्त्री को वरदान दिया कि स्त्रियों को हर महीने मासिक धर्म होगा। लेकिन महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा काम का आनंद उठा सकेगीं।
ये तीन भूल जिनके लिए इंद्र सबसे ताकतवर फिरभी क्यों डरते थे। और इसी वजह से वो इंद्रासन विहीन हुए थे।
संदर्भ...
ऋग्वेद मंडल 81
महाभारत की कथाएं
भागवत महापुराण
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