गुलज़ारजी और गुजरती भाषा के कवि सितांशु यशश्चंद्रजी

Gulzar sitanahu yashashchandra poem gujarati hindi poetry

Aug 20, 2025 - 07:49
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गुलज़ारजी और गुजरती भाषा के कवि सितांशु यशश्चंद्रजी
PC The Hindu

Gulzar sitanahu yashashchandra poem gujarati hindi poetry 

गुलज़ारजी और गुजरती भाषा के कवि सितांशु यशश्चंद्रजी

18 अगस्त गुलज़ारजी का जन्मदिन था और 19 अगस्त मेरी गुजरती भाषा के कवि सितांशु यशश्चंद्रजी का जन्मदिन है। दोनों की एक अलग ही ऊंचाई है। दोनों दोस्त भी है और दोनों भारत और विश्व की कविता के बड़े भावक है। जिस तरह संगीत में काई अव्वल दर्जे का गायक होता है वो स्वर को अपने हाथों से रममान करता है। ठीक उसी तरह ये शब्द के खेवैया है। जिन की लिखी किताबों में से संतृप्त हो के निकलना भावक की उपलब्धि मानी जाती है। सितांशुजी गुजरती भाषा के न केवल कवि है या नाट्यकर है पर कवि ने विश्व और भारतीय भाषा के कई काव्य गुजरती भाषा में अनुवाद और उनका आस्वाद के साथ प्रस्तुति कर के जो गुजरती को धन्य किया है, वह ऋण गुजरती के ये विद्वान कवि का यावदचंद्रदिवाकरौ रहेगा। हमारी भाषा में कुछ ऐसे ' विद्वान ' कवि है, जो शब्द की ये विद्या की सेवा करने के लिए अवतरित हुए है। गुजरती में जैसे राजेंद्र शुक्ल, लाभशंकर ठाकर और सितांशुजी जैसे कवियों ने भाषा को धन्य किया। मुझे गर्व है ऐसे कवि मेरी भाषा में कार्यरत है। आज के जन्मदिन पर विशेष स्मरणवंदना... 

 

सितांशु यशश्चंद्रजी की कुछ पंक्तियां। ( यूं तो ये सब गुजरती में है पर हिंदवी प्लेटफॉर्म पर कुछ रचनाएं हिंदी में भी है, कुछ मैं ने परिचय के खातिर शीघ्र ही अनुवाद किया - जो मेरी कक्षा नहीं है, फिर भी, चलो, पढ़ें...) ( अपनी भाषा के कवि को अन्य भाषा में पढ़ना भी एक रोमांच है। - जिसने गुजरती में सितांशुजी को पढ़ा होगा उन्हें ओर आनंद मिलेगा। ) 

 

सड़े को बचाएँ और ज़िंदा को मार डालें

आपका यह कैसा गोदाम है, बड़े सरकार!

(अनुवाद : महावीरसिंह चौहाण )

 

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अब नीचे की सारी काव्यपंक्तियां मेरे अनुवादित है। गुस्ताखी माफ... 

 

देव और दानवों ने सरल कर दिया,

उन से पहलें का समंदर मैंने देखा है। 

 

***

 

एक भवन ऐसा भी है

जिनको ढूंढते ढूंढते निकल जाते है नगर के आरपार 

 

****

 

रात्रि के काम्य देह में प्रगट होते ब्रह्माण्ड को

जब चाहता हूं तब मैं नहीं रहता। 

 

***

 

उसे मेरे जैसा कोई प्रेमी नहीं

मुझे उस के जैसी कोई शत्रु। 

 

****

 

अरण्य का हरा अंधेरा जो कहे वो सब करे

घूमे, फिरे, रति करे, गर्भ को धरे, अवतरे, मरे। 

 

***

 

ये महानुभावों की तस्वीर लेने के लिए और इतिहास संचित करने के लिए - The Hindu का मैं आभारी हु। 

 

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